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नवंबर 13, 2013

खुदा की कुदरत



ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं 
कभी सबा को कभी नामाबर को देखते हैं,

वो आये घर में हमारे खुदा की कुदरत है 
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं,

नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को 
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख्म-ए-जिगर को देखते हैं,

तेरे जवाहिर-ए-तर्फ़-ए-कुल (ताज में जड़े हीरे) को क्या देखें !
हम औज-ए-ताले-ए-लाल-ओ-गुहर (हीरे की किस्मत) को देखते हैं,