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दिसंबर 13, 2012

बदनाम



न तीर कमाँ में है न सैय्याद (शिकारी) कमी (घात) में 
गोशे (कोने) में क़फ़स (पिंजरे) के मुझे आराम बहुत है,

क्या ज़ोहद (सब्र) को मानूँ कि न हो गरचे रियाई (ढोंगी)
पादाश-ए-अमल (नतीजा ) कि तमअ-ए-खाम (लालच) बहुत है,

है अहल-ए-खिरद (ज़हीन) किस रविश-ए-खास (खास तर्ज) पे नाज़ाँ (फख्र) 
पाबस्त्गी-ए-रस्म-ओ-रह-ए-आम (आम रीति रिवाज़ के बंधन) बहुत है,

ज़मज़म (पाक पानी) ही पे छोड़ो मुझे क्या तौफ-ए-हरम (काबे कि परिक्रमा) से
आलूद: ब मय (शराब में भीगा) जाम-ए-एहराम (हज का कपड़ा) बहुत है,

है क़हर गर अब भी न बने बात कि उनको 
इन्कार नहीं और मुझे इब्राम (इल्तिजा) बहुत है,

खूँ होके जिगर आँख से टपका नहीं ए ! मर्ग (मौत)
रहने दे मुझे यहाँ कि अभी काम बहुत है, 

होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने 
शायर तो वो अच्छा है पर बदनाम बहुत है, 
            

नवंबर 02, 2012

दुश्मन आसमां अपना


ज़िक्र उस परीवश (परिचेहरा) का और फिर बयाँ अपना
बन गया रक़ीब (दुश्मन) आखिर था जो राजदां अपना, 

मय (शराब) वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-गैर में, या रब !
आज ही हुआ मंज़ूर उनको इम्तिहाँ अपना, 

मंज़र (नज़ारा) एक बुलंदी पर और हम बना सकते
अर्श (आसमां) से इधर होता काश के मकाँ अपना, 

दे वो जिस क़दर ज़िल्लत (बेईज्ज़ती) हम हँसी में टालेंगे
बारे आशना (दोस्त) निकला उनका पासबां (पहरेदार) अपना, 

दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक, जाऊँ उनको दिखला दूँ
उँगलियाँ फिगार (घायल) अपनी, खामा खूँ चका (खून से सना क़लम) अपना,

घिसते घिसते मिट जाता आपने अबस (बेकार) बदला
नंग-ए-सिजदा (सजदे के दाग) से संग-ए-आस्तां (चौखट) अपना,

ताकि करे न गम्माज़ी (चुगली), कर लिया है दुश्मन को 
दोस्त की शिकायत में हमने हमज़बाँ (राज़दार) अपना,

हम कहाँ के दाना (आलिम) थे किस हुनर में यकता (माहिर) थे ?
बेसबब (बिना वजह) हुआ है 'ग़ालिब' दुश्मन आसमां अपना,  
   

अक्तूबर 10, 2012

लगाव



जौर (ज़ुल्म) से बाज़ आयें पर बाज़ आएँ क्या 
कहते हैं हम तुमको मुँह दिखलायें क्या,

रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
हो रहेगा कुछ न कुछ घबराएँ क्या, 

लाग (दुश्मनी) हो तो उसको हम समझे लगाव 
जब न हो कुछ तो धोखा खाएँ क्या,

हो लिए क्यूँ नामाबर (डाकिये) के साथ साथ 
या रब ! अपने ख़त को हम पहुँचाएँ क्या,

मौज-ए-खूँ (खून कि लहर) सर से गुज़र ही क्यूँ न जाए
आस्तान-ए-यार (माशूक कि चौखट) से उठ जाएँ क्या, 

उम्र भर देखा किए मरने कि राह
मर गए पर देखिये दिखलाएँ क्या,

पूछते हैं वो कि "ग़ालिब" कौन है ?
कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या,  



सितंबर 25, 2012

क़त्ल



दोस्त ग़मख्वारी (दुःख) में मेरी सई (मदद) फरमाएंगे क्या?
ज़ख्म के भरने तलक नाख़ून न बढ़ जायेंगे क्या?

बेनियाज़ी (तकलीफ) हद से गुज़री बंदापरवर, कब तलक? 
हम कहेंगे हाल-ए-दिल, और आप फरमाएंगे 'क्या'?

हज़रत -ए-नासेह (उपदेशक) गर आयें दीद-ओ-दिल फर्श-ए-राह (क़दमों में पलकें) 
कोई मुझको यह तो समझा दो, कि समझायेंगे क्या?

आज वाँ तेग-ओ-कफ़न (तलवार और कफ़न) बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज्र (ऐतराज़) मेरे क़त्ल में, वो अब लायेंगे क्या?

गर किया नासेह ने हमको क़ैद, अच्छा यूँ ही सही 
ये जूनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छूट जाएगें क्या?

खाना जाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं (जुल्फों के बंदी), ज़ंजीर से भागेंगे क्यूँ 
है गिरफ्तार-ए-वफ़ा, ज़िन्दां (कैदखाने) से घबराएंगे क्या?

है अब इस मामूरे (बस्ती) में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फत (इश्क़ का आकाल)
हमने यह माना, कि दिल्ली में रहेंगे, खायेंगे क्या?  

सितंबर 07, 2012

निकम्मा



गैर लें महफ़िल में बोसे (चुम्बन) जाम के 
हम रहे यूँ तिशना लब (प्यासे) पैगाम के,

खस्तगी (बर्बादी) का तुमसे क्या शिकवा कि ये
हथकंडे हैं चर्खे-ए-नीली फाम (नीले आसमान) के,

ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक हैं तुम्हारे नाम के

रात पी ज़मज़म (पाक पानी) और मय सुबहदम (सुबह)
धोये धब्बे जाम-ए-अहराम (हज के पाक कपड़े) के,

दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर
ये भी हलके (धागे) हैं तुम्हारे दाम (जाल) के,

शाह (बादशाह) के है गुस्ल-ए-सेहत की खबर
देखिये दिन कब फिरें हम्माम (गुस्लखाना) के,

इश्क ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया 
वरना हम भी आदमी थे काम के, 

अगस्त 17, 2012

आतिश



नुक्ताचीं (गलती निकलना) है गम-ए-दिल उसको सुनाए न बने
क्या बने बात, जहाँ बात बनाए न बने,

मैं बुलाता तो हूँ उसको, मगर ए ! जज्बा-ए-दिल 
उस पे बन जाये कुछ ऐसी की बिन आए न बने,

खेल समझा हैं कहीं छोड़ न दे, भूल न जाए
काश ! यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने,

ग़ैर फिरता है लिए यूँ तेरे ख़त को, कि अगर 
कोई पूछे, कि क्या है ये ? तो छुपाए न बने,

इस नज़ाकत का बुरा हो, वो भले हैं, तो क्या?
हाथ आएं, तो उन्हें हाथ लगाए न बने,

कह सके कौन कि ये जलवागीरी किसकी है?
पर्दा छोड़ा है वो उसने, कि उठाये न बने,

मौत कि राह न देखूँ, कि बिन आए न रहे
तुमको चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने,

बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न बने
काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने,

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने,

जुलाई 19, 2012

उम्मीद



कोई उम्मीद बर (पूरी) नहीं आती 
कोई सूरत नज़र नहीं आती, 

मौत का एक दिन मु'अय्यन (मुक़र्रर) है 
नींद क्यूँ फिर रात भर नहीं आती, 

आगे (पहले) आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी 
अब किसी बात पर नहीं आती,

जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद (इबादत की ताक़त)
पर तबीयत इधर नहीं आती,

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ 
वर्ना क्या बात कर नहीं आती, 

क्यूँ न चीख़ूँ कि याद करते हैं 
मेरी आवाज़ गर नहीं आती, 

दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता 
बू भी ए ! चारागर (हकीम) नहीं आती,

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी 
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती,

मरते हैं आरज़ू में मरने की 
मौत आती है पर नहीं आती,

काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब' 
शर्म तुमको मगर नहीं आती, 

जुलाई 02, 2012

काफ़िर


कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझ से 
जफ़ायें करके अपनी याद शर्मा जाये है मुझ से,

ख़ुदाया! ज़ज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उलटी है 
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाये है मुझ से, 

वो बद-ख़ू (बदमिजाज़), और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी (लम्बी) 
इबारत मुख़्तसर (छोटी), क़ासिद (डाकिया) भी घबरा जाये है मुझ से,

उधर वो बदगुमानी है, इधर ये नातवानी (कमजोरी) है 
ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझ से, 

सँभलने दे मुझे ऐ नाउम्मीदी, क्या क़यामत है 
कि दामन-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाये है मुझ से, 

तकल्लुफ़ बर-तरफ़ (साफगोई), नज़्ज़ारगी (देखने) में भी सही, लेकिन 
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझ से 

हुए हैं पाँव ही पहले नवर्द-ए-इश्क़ (इश्क की जुंग) में ज़ख़्मी 
न भागा जाये है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझ से,

क़यामत है कि होवे मुद्दई (दुश्मन) का हमसफ़र "ग़ालिब"
वो काफ़िर, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझ से

जून 11, 2012

असर


आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ के सर (सुलझने) होने तक,

दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग (लहरों में मगरमच्छ)
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर (मुसीबत) होने तक,

आशिकी सब्र तलब (धैर्य) और तमन्ना बेताब‌
दिल का क्या रंग करूं खून‍-ए-जिगर होने तक,

हमने माना कि तगाफुल (उपेक्षा) ना करोगे लेकिन‌
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक,

परतवे-खुर (सूरज) से है शबनम को फ़ना की तालीम 
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक,

यक-नज़र बेश (एक नज़र काफी) नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल 
गर्मी-ए-बज्म (,महफ़िल की गर्मी) है इक रक्स-ए-शरर (अंगारों का नाच) होने तक,

गम-ए-हस्ती (जिंदगी के गम) का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-(मौत के सिवा) इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक, 


मई 25, 2012

कब वो सुनता है कहानी मेरी



कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी,

ख़लिशे-ग़म्ज़-ए-खूँरेज़ (तंज की चुभन) न पूछ
देख ख़ूनाबा-फ़िशानी (खून के आँसू) मेरी,

क्या बयाँ करके मेरा रोएँगे यार
मगर आशुफ़्ता-बयानी (बकवास) मेरी,

हूँ ज़िख़ुद-रफ़्ताए-बैदा-ए-ख़याल(ख्यालों में खोया)
भूल जाना है निशानी मेरी,

मुत्तक़ाबिल (डरपोक) है मुक़ाबिल (दुश्मन) मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी,

क़द्रे-संगे-सरे-रह (रास्ते का पत्थर) रखता हूँ
सख़्त-अर्ज़ाँ (मामूली) है गिरानी (शख्सियत) मेरी,

गर्द-बाद-ए-रहे-बेताबी (सड़क की आँधी) हूँ
सरसरे-शौक़ (जोश) है बानी (खूबी) मेरी,

दहन (मुँह) उसका जो न मालूम हुआ
खुल गयी हेच-मदानी (बेवकूफी) मेरी,

कर दिया ज़ओफ़ (बीमारी) ने आज़िज़ "ग़ालिब"
नंग-ए-पीरी (बुढ़ापे से भी बुरी) है जवानी मेरी,

मई 10, 2012

वो दिल नहीं रहा



अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ (प्यार के इज़हार) के क़ाबिल नहीं रहा 
जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा 

जाता हूँ दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती(जिंदगी के ज़ख्म) लिये हुए 
हूँ शमआ़-ए-कुश्ता(बुझी हुई शमा) दरख़ुर-ए-महफ़िल(महफिल के काबिल) नहीं रहा 

मरने की ऐ दिल और ही तदबीर कर कि मैं 
शायाने-दस्त-ओ-खंजर-ए-कातिल (कातिल का बाज़ू खंजर चलाने के काबिल) नहीं रहा

बर-रू-ए-शश जिहत (ज़मीं और आसमां) दर-ए-आईनाबाज़ (आस-पास) है 
यां इम्तियाज़-ए-नाकिस-ओ-क़ामिल (अधूरे और पूरे का भेद)  नहीं रहा

वा (खोल) कर दिये हैं शौक़ ने बन्द-ए-नक़ाब-ए-हुस्न (हुस्न से नकाब का खुलना) 
ग़ैर अज़ निगाह अब कोई हाइल (रूकावट) नहीं रहा 

गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हाए-रोज़गार (बेरोजगार) 
लेकिन तेरे ख़याल से ग़ाफ़िल (अनजान) नहीं रहा 

दिल से हवा-ए-किश्त-ए-वफ़ा (वफ़ा की आस) मिट गया कि वां (यूँ)
हासिल सिवाये हसरत-ए-हासिल (पाने की हसरत) नहीं रहा 

बेदाद-ए-इश्क़ (इश्क के ज़ुल्म) से नहीं डरता मगर 'असद' 
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा


अप्रैल 18, 2012

मेरे दर्द की दवा करे कोई


इब्ने-मरियम (ईसा मसीह) हुआ करे कोई 
मेरे दर्द की दवा करे कोई, 

शरअ-ओ-आईन (पाक दर)पर मदार (इन्साफ) सही 
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई,

चाल, जैसे कड़ी कमाँ का तीर 
दिल में ऐसे के जा (जगह) करे कोई,

बात पर वाँ ज़बान कटती है
वो कहें और सुना करे कोई,

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई,

न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई,

रोक लो, गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई,

कौन है जो नहीं है हाजतमंद (ज़रूरतमंद)
किसकी हाजत (ज़रूरत) रवा (पूरी) करे कोई 

क्या किया ख़िज्र** ने सिकंदर से 
अब किसे रहनुमा करे कोई, 

जब उम्मीद ही उठ गयी "ग़ालिब" 
क्यों किसी का गिला करे कोई,
---------------------------------------------
** ख़िज्र सिकंदर का नौकर था और उसने सिकंदर को धोखा दिया था |

मार्च 31, 2012

राहबर


हैरां हूँ, दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं 
मक़दूर (अमीर) हूँ तो साथ रखूँ नौहागर (मौत पर रोने वाले) को मैं, 

छोड़ा न रश्क (जलन) ने कि तेरे घर का नाम लूँ 
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं ?

जाना पड़ा रक़ीब (दुश्मन) के दर पर हज़ार बार 
ऐ काश, जानता न तेरी रहगुज़र को मैं, 

है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे 
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं, 

लो, वो भी कहते हैं कि ये बेनंग-ओ-नाम (बर्बाद) है 
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं, 

चलता हूँ थोड़ी दूर हर-इक तेज़-रौ (बहती लहर) के साथ 
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर (गुरु) को मैं, 

ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश (पूजा) दिया क़रार 
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगर (पत्थर दिल) को मैं? 

फिर बेख़ुदी में भूल गया, राह-ए-कू-ए-यार (यार की गली) 
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं, 

अपने पे कर रहा हूँ क़यास (अंदाज़ा) अहल-ए-दहर (दुनिया वालों) का 
समझा हूँ दिल-पज़ीर (दिल की पसंद) मताअ़-ए-हुनर (दौलत का हुनर) को मैं 
,
"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़ (गर्व के घोड़े पर सवार) 
देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर (अली बहादुर - एक पीर) को मैं,

मार्च 12, 2012

आईना


आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे,

हसरत ने ला रखा तेरी बज़्म-ए-ख़याल में
गुलदस्ता-ए-निगाह सुवैदा ( दिल का दाग़) कहें जिसे,

फूँका है किसने गोश-ए-मुहब्बत (सनम के कान) में ऐ ख़ुदा !
अफ़सून-ए-इन्तज़ार (इंतज़ार का जादू) तमन्ना कहें जिसे,

सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी (दर्द की इन्तिहा) से डालिये
वो एक मुश्त-ए-ख़ाक (एक मुट्ठी ख़ाक) कि सहरा (रेगिस्तान) कहें जिसे,

है चश्म-ए-तर (भीगी आँख) में हसरत-ए-दीदार से निहां (छुपा)
शौक़-ए-अ़ना-गुसेख़्ता (बेलगाम शौक) दरिया कहें जिसे,

दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल हाये-ऐश (फूलों का खिलने) को
सुबह-ए-बहार पम्बा-ए-मीना (शराब में भीगा रुई का फाहा) कहें जिसे,

"गा़लिब" बुरा न मान जो वाइज़ (उपदेशक) बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे ?

फ़रवरी 21, 2012

पत्थर नहीं हूँ मैं


दायम (हमेशा) पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं,

क्यों गर्दिश-ए-मुदाम (बुरा वक़्त) से घबरा न जाये दिल ?
इन्सान हूँ, प्याला-ओ-साग़र (शराब का प्याला) नहीं हूँ मैं,

या रब! ज़माना मुझको मिटाता है किस लिये ?
लौह-ए-जहां (लोहे के वरक़) पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर (हमेशा का लिखा) नहीं हूँ मैं,

हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत (दर्द) के वास्ते
आख़िर गुनाहगार हूँ, काफ़िर नहीं हूँ मैं,

किस वास्ते अज़ीज़ (अपने) नहीं जानते मुझे ?
लाल-ओ-ज़मुर्रुदो--ज़र-ओ-गौहर (लाल,पन्ना,सोना और मोती) नहीं हूँ मैं,

रखते हो तुम क़दम मेरी आँखों से क्यों दरेग़ (दूर) ?
रुतबे में मेहर-ओ-माह सूरज और चाँद) से कमतर नहीं हूँ मैं,

करते हो मुझको मनअ़-ए-क़दम-बोस (पैर चूमने से मना) किस लिये ?
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं ?

'ग़ालिब' वज़ीफ़ाख़्वार (पेंशन पाने वाले) हो, दो शाह (बादशाह) को दुआ
वो दिन गये कि कहते थे "नौकर नहीं हूँ मैं" ,

फ़रवरी 04, 2012

क़रार


आ, कि मेरी जान को क़रार नहीं है 
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इन्तज़ार (इंतज़ार के बर्दाश्त की ताक़त) नहीं है, 

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर (दुनिया की जिंदगी) के बदले 
नशा बअन्दाज़ा-ए-ख़ुमार (खुमार का अंदाज़) नहीं है,

गिरियां (गिरते आंसू) निकाले है तेरी बज़्म से मुझको 
हाय कि रोने पे इख़्तियार नहीं है, 

हमसे अ़बस (बेरुखी) है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर (नाराज़गी का अंदेशा) 
ख़ाक में उश्शाक़ (आशिक) की ग़ुबार नहीं है,

दिल से उठा लुत्फ-ए-जल्वा हाए म'आनी (मतलब) 
ग़ैर-ए-गुल (बिना फूल के) आईना-ए-बहार नहीं है,

क़त्ल का मेरे किया है अ़हद (फैसला) तो बारे (आखिर) 
वाये! अखर (लेकिन) अ़हद उस्तवार (पक्का) नहीं है, 

तूने क़सम मैकशी (शराबखोरी) की खाई है "ग़ालिब"
तेरी क़सम का मगर कुछ ऐतबार नहीं है,

जनवरी 17, 2012

जला है जिस्म जहाँ


हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है'? 
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू (तरीका) क्या है,

न शो'ले (आग) में ये करिश्मा न बर्क़ (बिजली) में ये अदा 
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू (शरारत, अकड़) क्या है, 

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न (बातचीत) तुमसे 
वर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू (दुश्मन के सिखाने का डर) क्या है, 

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन (लिबास)
हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू (रफू की ज़रूरत) क्या है,

जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा 
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू (तलाश) क्या है, 

रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल  
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है, 

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त (जन्नत) अज़ीज़ 
सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू (गुलाबी महकती शराब) क्या है, 

पियूँ शराब अगर ख़ुम (शराब के ढोल) भी देख लूँ दो-चार 
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू (बोतल, प्याला, सुराही) क्या है, 

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार (बोलने की ताक़त) और अगर हो भी 
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू (ख्वाहिश) क्या है,

हुआ है शाह (शहंशाह) का मुसाहिब (दरबारी), फिरे है इतराता 
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू (इज्ज़त) क्या है,

जनवरी 05, 2012

जहाँ कोई न हो


रहिये अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो 
हमसुख़न (हमदर्द) कोई न हो और हमज़बाँ (अपनी भाषा जानने वाला) कोई न हो, 

बेदर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिये 
कोई हमसाया (साथी) न हो और पासबाँ (हिफाज़त करने वाला) कोई न हो, 

पड़िये गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार (बीमार की सेवा करने वाला) 
और अगर मर जाईये तो नौहाख़्वाँ (मौत पर रोने वाला) कोई न हो,