Click here for Myspace Layouts

मार्च 26, 2011

जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझ से


कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझ से 
जफ़ायें करके अपनी याद शर्मा जाये है मुझ से, 

ख़ुदाया! ज़ज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उलटी है 
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाये है मुझ से,

वो बद-ख़ू (बदमिजाज़), और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी (इश्क की लम्बी कहानी) 
इबारत मुख़्तसर, क़ासिद  भी घबरा जाये है मुझ से, 

उधर वो बदगुमानी है, इधर ये नातवानी (कमजोरी) है 
ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझ से,

सँभलने दे मुझे ऐ नाउम्मीदी, क्या क़यामत है 
कि दामन-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाये है मुझ से,

तकल्लुफ़ बर-तरफ़ (एक तरफ), नज़्ज़ारगी (रूहानियत) में भी सही, लेकिन 
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझ से, 

हुए हैं पाँव ही पहले नवर्द-ए-इश्क़ (इश्क की जंग) में ज़ख़्मी 
न भागा जाये है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझ से, 

क़यामत है कि होवे मुद्दई (दुश्मन) का हमसफ़र "ग़ालिब"
वो काफ़िर, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझ से